भाग -३ (अंतिम)
वर्ण व्यवस्था पर ओशो रजनीश के एक प्रवचन (गीता दर्शन, भाग-१, सोलहवां प्रवचन, सन अनुमानतः १९७० के उपरांत) का उद्धरण
"वर्ण का जन्म से कोई सम्बन्ध नहीं है. लेकिन सम्बन्ध निर्मित हो गया. हो जाने के पीछे बहुत कारण हैं, वह मैं बात करूंगा. हो जाने के पीछे कारण थे, वैज्ञानिक ही कारण थे. सम्बन्ध नहीं था जन्म के साथ वर्ण का, इस लिए फ़्लुइडिटि थी, और कोई विश्वामित्र यहाँ से वहां हो भी जाता था. संभावना थी कि एक वर्ण से दूसरे वर्ण में यात्रा हो जाये. लेकिन जैसे ही यह सिद्धांत खयाल में आ गया और इस सिद्धांत की परम वैज्ञानिकता सिद्ध हो गयी कि प्रत्येक व्यक्ति अपने वर्ण से, अपने ही स्वधर्म से ही सत्य को उपलब्ध हो सकता है, तो एक बहुत जरूरी बात पैदा हो गयी और वह यह कि यह कैसे पता चले कि कौन व्यक्ति किस वर्ण का है. अगर जन्म से तय न हो, तो शायद ऐसा भी हो सकता है कि एक आदमी जीवन भर कोशिश करे और पता ही ना लग पाए कि किस वर्ण का है; उसका क्या है झुकाव, वह क्या होने को पैदा हुआ है - पता ही कैसे चले? तो फिर सुगम यह हो सकता है कि अगर जन्म से कुछ निश्चय किया जा सके.
लेकिन जन्म से कैसे निश्चय किया जा सके? कोई आदमी किसी के घर में पैदा हो गया, इस से तय हो जायेगा? कोई आदमी किसी के घर पैदा हो गया, ब्राह्मण के घर में, तो ब्राह्मण हो जाएगा?
जरूरी नहीं है. लेकिन बहुत संभावना है. प्रोबबिलीटी ज्यादा है. और उस प्रोबबिलीटी को बढाने के लिए, सर्टन करने के लिए बहुत से प्रयोग किये गए. बड़े से बड़ा प्रयोग यह था कि ब्राह्मण को एक सुनिश्चित जीवन व्यवस्था दी गयी, एक डिसिप्लिन दी गयी.........लेकिन दो जातियों में शादी न हो, उसका कारण बहुत दूसरा था. उसका कुल कारण इतना था कि हम प्रत्येक वर्ण को एक स्पष्ट फॉर्म, एक रूप दे देना चाहते थे....
इन चार हिस्सों में जो स्ट्राटीफिकेशन किया गया समाज का, चार हिस्सों में तोड़ दिया गया, ये चार हिस्से ऊपर-नीचे की धारणा से बहुत बाद में भरे. पहले तो एक बहुत वैज्ञानिक, एक बहुत मनोवैज्ञानिक प्रयोग था जो इनके बीच किया गया. ताकि आदमी पहचान सके कि उसके जीवन का मौलिक पैशन, उसके जीवन की मौलिक वासना क्या है......
मूल्य रुपये में नहीं होता. मूल्य व्यक्ति के वर्ण में होता है. उस से रुपये में आता है. अगर वैश्य के हाथ में रूपया आ जाए तो उस में मूल्य होता है, क्षत्रिय के हाथ में रुपये का मूल्य इतना ही होता है कि तलवार खरीद ले, इस से ज्यादा मूल्य नहीं होता, इनट्रीनसिक वैल्यू नहीं होती रुपये की क्षत्रिय के हाथ में; हाँ एक्सटर्नल वैल्यू हो सकती है कि तलवार खरीद ले.
इति.
इसी क्रम में -
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