Saturday, March 12, 2011

वर्ण की वैज्ञानिकता - The Caste System Revisited (Osho) - 2

भाग -२
वर्ण व्यवस्था पर ओशो रजनीश के एक प्रवचन (गीता दर्शन, भाग-१, सोलहवां प्रवचन, सन अनुमानतः १९७० के उपरांत) का उद्धरण  

"लेकिन नीत्से किसी एक वर्ग के लिए ठीक-ठीक बात कह रहा है. किसी के लिए तारों में कोई अर्थ नहीं होता. किसी के लिए एक ही अर्थ होता है, एक ही संकल्प होता है कि शक्ति और उर्जा के उपरी शिखर पर कैसे उठ जाए. उसे हमने कहा था क्षत्रिय.....

चित्र "द लास्ट मुग़ल" से  
तीसरा एक वर्ग और है, जिसको तलवार में सिर्फ भय के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं दिखाई पड़ेगा; संगीत तो कभी नहीं, सिर्फ भय दिखाई पड़ेगा. जिसे ज्ञान की खोज नासमझी मालूम पड़ेगी कि सरफिरों का काम है. तो तीसरा वर्ग है, जिसके लिए धन महिमा है. जिसके लिए धन ही सब कुछ है. धन के आस पास ही जिसके जीवन की सारी व्यवस्था निर्मित होती है. अगर वैसे आदमी को मोक्ष की भी बात करनी हो तो उसके लिए मोक्ष भी धन के रूप में ही दिखाई पद सकता है. अगर वह भगवान् का भी चिंतन करेगा तो भगवन को लक्ष्मीनारायण बनाये बिना नहीं रह सकता. इसमें उसका कोई कसूर नहीं है. सिर्फ फैक्ट, सिर्फ तथ्य की बात कर रहा हूँ मैं. और ऐसा आदमी छिपाए अपने को, तो व्यर्थ ही कठिनाई में पड़ेगा. अगर वह दबाये अपने आपको तो कठिनाई में पड़ेगा. उसके लिए जीवन की जो परम अनुभूति का द्वार है, वह शायद धन की खोज से ही खुलने वाला है. इस लिए और कहीं से खुलने वाला नहीं है. 

अब एक रॉकफैलेर या एक मोर्गोन या एक टाटा, ये कोई छोटे लोग नहीं हैं. कोई कारण नहीं है इनके छोटे होने का. ये अपने वर्ग में वैसे ही श्रेष्ठ हैं जैसे कोई याज्ञवल्कय, जैसे कोई पतंजलि, जैसे कोई अर्जुन अपने वर्गों में होंगे. इस में कोई तुलना, कोई कम्पेरिज़न नहीं है.

वर्ग की जो धारणा है, वह तुलनात्मक नहीं है, वह सिर्फ तथ्यात्मक है. जिस दिन वर्ण की धारणा तुलनात्मक हुई, कि कौन ऊपर और कौन नीचे, उस दिन वर्ण की वैज्ञानिकता चली गयी और वर्ण एक सामजिक अनाचार बन गया. जिस दिन वर्ण में तुलना पैदा हुई - कि क्षत्रिय ऊपर, कि ब्राह्मण ऊपर, कि वैश्य ऊपर, कि शूद्र ऊपर, कि कौन नीचे, कि कौन पीछे - जिस दिन वर्ण का शोषण किया गया, वर्ण के वैज्ञानिक सिद्धांत को जिस दिन समाजिक शोषण की आधारशिला में रखा गया, उस दिन से वर्ण की धारणा अनाचार हो गयी. 

सभी सिद्धांतों का अनाचार हो सकता है, किसी भी सिद्धांत का शोषण हो सकता है. वर्ण की धारणा का भी शोषण हुआ. और इस मुल्क में जो वर्ण की धारणा के समर्थक हैं, वे उस वर्ण की वैज्ञानिकता के समर्थक नहीं हैं. उस वर्ण के आधार पर जो शोषण खड़ा है, उस के समर्थक हैं. उसकी वजह से वे तो डूबेंगे ही, वर्ण का एक बहुत वैज्ञानिक सिद्धांत भी डूब सकता है. 

चित्र अंतरजाल से 
एक चौथा वर्ग भी है, जिसे धन से भी प्रयोजन नहीं है, शक्ति से भी अर्थ नहीं है, लेकिन जिसका जीवन कहीं बहुत गहरे में सेवा और सर्विस के आस-पास घूमता है. जो अगर अपने आप को कहीं समर्पित कर पाए और किसी की सेवा कर पाए तो फुल्फिल्मेंट को, अप्ताता को उपलब्ध हो सकता है. 

ये जो चार वर्ग हैं, इनमें कोई नीचे ऊपर नहीं हैं. ऐसे चार मोटे विभाजन हैं. और कृष्ण की पूरी साइकोलोजी, कृष्ण का पूरा मनोविज्ञान इसी बात पर खड़ा है कि प्रत्येक व्यक्ति को परमात्मा तक पहुँचने का जो मार्ग है, वह उसके स्वधर्म से गुजरता है. स्वधर्म का मतलब हिन्दू नहीं, मुसलमान नहीं, जैन नहीं. स्वधर्म का मतलब, उस व्यक्ति का जो वर्ण है. और वर्ण का जन्म से कोई सम्बन्ध नहीं है. लेकिन सम्बन्ध निर्मित हो गया. हो जाने के पीछे बहुत कारण हैं, वह मैं बात करूंगा." 

(आगे जारी...)   

इसी क्रम में - 
      

3 comments:

Subhash Chhabra said...

राहुल अच्छा लगा । किसी भी topic पर आोशो के विचार इतने पारदर्शी व सत्य होते हैं जो दिल की गहराई तक उतर ही जाते हैं । कोई प्रयास नही करना पड़ता ।
सुभाष छाबड़ा

Rahul Gaur said...

ठीक कहा छाबड़ा अंकल. "पारदर्शी और सत्य". बढ़िया बात कही है.

Unknown said...

very nice. thanks a lot...

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