इसी छब्बीस जनवरी को, जब टी.वी. पर "गाँधी" फिल्म दिखाई जा रही थी, मैंने इस अद्भुत और विलक्षण व्यक्तित्व (चाहे नाट्य रूपांतर ही सही) का करिश्मा एक बार फिर देखा और महसूसा.
हमारे देश में, खासकर मेरी पीढ़ी में, गाँधी को गाली देने का और उन्हें देश की दुर्दशा के बीज बोने का जिम्मेदार ठहराने का फैशन सा है. शायद ये इस लिए है कि हम बेईमान, भ्रष्ट और सत्ता-लोलुप राजनीतिज्ञों के समय में पले बढे हैं. ऐसे में, किसी ऐसे राजनीतिज्ञ की कल्पना कर पाना, जो वाकई निस्वार्थ भाव से देश के लिए जीने और मरने की ताकत और हिम्मत रखता था, अकल्पनीय है.
अल्बर्ट आइन्स्टीन ने गाँधी के निधन पर कहा था - “Generations to come will scarce believe that such a one as this walked the earth in flesh and blood.”
कोई आश्चर्य नहीं कि उस कठिन समय में इस आदमी ने पूरे देश से "बापू" और "महात्मा" का दर्ज़ा पाया और इसे निभाया. पूरा देश इस संत की आराधना में एक हो गया था, जुड़ गया था.
इसके उलट, छब्बीस जनवरी के बाद, फरवरी शुरू होते होते ही हमारे कुछ आधुनिक नेताओं ने राजनीतिक रोटियाँ सेकने की खातिर भारतीय जन-मानस को तोड़ने के अपने agenda को हवा दी है.
ईकिंसवी शताब्दी में भी एक विशुद्ध कबीलाई सोच को जीवित रख कर और गरीब बेकार लोगों को क्षेत्र और भाषा के नाम पर उकसा कर गुंडा-गर्दी मचा पाने में वो आज तक जैसे सफल हुए हैं, वो भयावह है.
पर ख़ुशी की बात यह है कि इस बार, पहली बार यह लग रहा है कि middle-of-the-road, sensible thinking के बहुत से दावेदार उठ खड़े हुयें हैं. यहाँ तक कि घोर हिंदुत्व-वादी पार्टियां भी इनमे शामिल हैं. आशा है इस बार घृणा के बादल छंट पाएंगे और कुछ मंगलमय होगा.
जैसा गाँधी ने कहा था - When I despair, I remember that all through history the ways of truth and love have always won. There have been tyrants and murderers, and for a time they seem invincible, but in the end, they always fall. Think of it - always.
4 comments:
How true are your views. I also feel ultimately one has to do deeds one is not shameful of and can admit having done before the world at large. If we adopt this in our actions,half our problems would be over. I think Gandhiji too followed this law very succesfully and his life was an open book. One also needs to learn the lesson that one should have the courage to admit ones mistake
Thanks Rakesh Ji for visiting and for your views.
Gandhi did some things which he was ashamed of but the fact that he accepted it truthfully made him different from you and me.
The times when Gandhiji pulled the country out of the British mess can in no way be compared with the present day rat race.
Today if anyone attempts of serving with a selfless motive, he is at first questioned about the intentions.
Thanks to our sugar coated, yet extremely bitter netas.
The faith that Gandhiji built has perished long back.
Our chilren are already learning essays on Mayawati.
The day is not far when likes of Shiboo Soren will lecture us on moral education (from Red Fort on 15th Aug). That will be a real earthquake.
Yes, Abhilasha. Sad..but true. We need to stop and think long and hard as to where are we going. Something needs to be done.
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