डॉन-२ देखने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि इस बार डॉन को
पकड़ना फरहान के लिये नामुमकिन ही रहा है.
फिल्म के बनते बनते वो नज़र-अंदाज कर गये कि दशकों से डॉन नाम
का जो किरदार प्रशंसकों (जिनमें खुद फरहान भी शामिल हैं ) के दिमाग़ में सहेजा गया
है, वो कोई मशीनी पुतला या सुपर-हीरो नहीं है और उसे “सुपर-कूल” होने के लिये कोई
गैजेट्स की ज़रूरत नहीं है. उस पात्र की गहराई उस सब से थी, जो पर्दे पर दिखता ही
नही, जिसे अंग्रेज़ी में “reading between the lines” कहेंगे, और जो
कमाल है लेखकों का और निर्देशक का. और ये सब फरहान डॉन-१ में ला पाये थे पर इस बार
ऐसा लगता है कि पर्दे पर सिर्फ चमकदार, हॉलिवुड टाईप फिल्म परोसने में उलझ कर चूक
गये.
मेरी नापसंदगी का एक और बड़ा कारण इस की एक बहुत ही घिसी-पिटी,
कई जगहों से उधार सी ली गयी कथानक-कहानी है, जिसकी फरहान जैसे पैने फिल्मकार से उम्मीद
मुझे नहीं थी.
अन्य कलाकारों और संगीत के बारे में कुछ कहने जैसा नहीं है.
यह ज़रूर मानना होगा कि शाहरूख़-कलाकार नहीं तो शाहरूख़-स्टार
पर बहुत मेहनत की गयी है, और आजकल जिसे स्टाइलिंग कहते हैं, वह इस फिल्म में भरपूर
है. कुछ कार-रेसिंग के दृश्य बहुत बढ़िया फिल्माए गये हैं.
अन्य कलाकारों और संगीत के बारे में कुछ कहने जैसा नहीं है.
फिल्म के आखिर में एक “हुक” से ऐसा लगा कि कुछ समय बाद
डॉन-३ की संभावना बन सकती है. आशा है, उस समय फरहान डॉन को पकड़ पायेंगे.
1 comment:
As usual i agree with ur comment. I think Shahrukh misfit fr this role.He tried his best bt couldnt convince as DON..
Post a Comment