Thursday, April 15, 2010

एक पत्र भगवान् के नाम - ४

पिछली किस्त से जारी


मौसम सूखा और गर्म है - गर्मी तन से ज्यादा दिमागों में है, गर्मी बाहर सड़कों पर है, नारे लगाती भीड़ की भिंची मुठ्ठियों में है, गरीब की फटी बनियान में है, गर्म खून में है जो रगों में बहता है.
प्रभु, आपके समय में क्या मौत ठंडी, शांत होती थी? अब बदलाव आ गया है - मौत का सन्नाटा अब ऐसा डरा देता है कि पूछो मत! भूख से मौत, प्रकोप से मौत, आदमी की मौत से भी गन्दी, बदबू मारती, आदमियत की और उसके सपनों की मौत!
अभी परसों अपनी दुकान पर आने वाले, यू.आइ.टी. ऑफिस के एक बाबूजी एक शेर सुना गए. मुझे तो समझ आया नहीं लेकिन लोगों ने बड़ी वाह-वाह की, शायद सिचुएशन पर फिट बैठ रहा है -
ख्वाबों में सलाखें हैं,
सलाखों में ख्वाब हैं.
आशा करता हूँ कि आप को समझ आया होगा. अगले पत्र में मुझे समझाइएगा - अभी यहाँ ऐसे ही फिट करने की कोशिश की है.
अच्छा हाँ - पत्र वैगरह कुछ भेजें तो पहले पता कन्फर्म कर लीजियेगा. असल में आज कल देश को कुछ बदल रहे हैं - काफी बड़ा हो गया है, संभलता नहीं है न, इसलिए रोटी के जैसे टुकड़े कर रहे हैं - अपनी अपनी रखो, अपनी अपनी खाओ. भाईचारा, देश की एकता जैसे नारे अब धुंधले पड़ गए हैं, सो बदलाव मांगता है. तो कहने का मतलब ये कि कब अपना मोहल्ला एक अलग देश बन जाए, कह नहीं सकते.
खैर, पत्र बंद करूंगा - अब आप भी बोरे होने लगे होंगे, टी.वी. पर मुझे चित्रहार भी देखना है. फिर समाचार भी आयेंगे - मुन्नू की माँ को नहीं दिखाता ये चीज़ें - फिर नयी नयी फरमाइश करती है - यह ला कर दो, वह ला कर दो. मैडम को नमस्कार कहियेगा, मुन्नू की माँ भी चरण स्पर्श कहाती है.
अगली बार पत्र थोडा entertaining लिखने की कोशिश करूंगा. स्टार टी.वी. के बारे में लिखूंगा, नाच गान के बारे में लिखूंगा, बड़े होटलों के बारे में, शो-रूमों के बारे में, फिल्मों के बारे में लिखूंगा. वादा करता हूँ प्रभु, अबकी असलियत नहीं लिखूंगा.
कोशिश करना पधारने की, फिर कोई नया अवतार लेने की - हमारी भी approach हो जाएगी ऊपर में और शायद, सपने बेचते नेता, आतंकित करने वाली पुलिस, थका देने वाली फाइलें, द्रौपदियों के चीर-हरण, बारूद की गंध, सिसकती हुई इंसानियत - कुछ तो रुकेगा.
अच्छा, चरण धोक
आपका भक्त
चन्दन दास पान वाला. 

समाप्त.

लीजिये, यह व्यंगय तो समाप्त है पर इस के पीछे भयावह बात यह है, जैसा के मेरे मित्र मनीष ने भी मुझसे कहा, कि १५ - २० सालों पुराना पत्र आज भी कितना कुछ प्रासंगिक है!! उफ़, कब कुछ बदलेगा!!

पहली किस्त - एक पत्र भगवान् के नाम - १
दूसरी किस्त - एक पत्र भगवान् के नाम - २
तीसरी किस्त - एक पत्र भगवान् के नाम - ३

1 comment:

Unknown said...

Bhagwan bhi ab to avtar lene se darte hai.... good full of hidden aakrosh.adi

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