Friday, April 02, 2010

एक पत्र भगवान के नाम - २

(पिछली किस्त से जारी)

भगवन, एक ख़ुशी की की बात यह है कि अपना मुन्नू पांचवी कक्षा में पास हो गया है. हेड-मास्टर साब हमारी ही दुकान पर पधारते हैं, पान खाने, और जब उनकी बिटिया के हाथ पीले हुए थे, उस समय हमने भी मुफ्त में हाथ बड़े लाल किये थे.
वैसे, मुन्नू खेलने में बड़ा माहिर है - कितनी बार तो मैं उसे नुक्कड़ से गिल्ली डंडा खेलते हुए उठा कर लाया हूँ.
भगवन, मैं सिरिअस्ली सोच रहा हूँ - मुन्नू को खेल की लाइन पकडवा दें तो कैसा रहेगा? बड़ा होगा तो मौज करेगा - बाहर देशों में जाएगा, खूब पैसा कमाएगा, हर जगह हार जायेगा - और घर पर खूब गालियाँ खायेगा.
गालियों की आदत तो मैं डाल रहा हूँ - कान पक रहे हैं उसके.
और नयी खेल नीति की बात बहुत धड़ल्ले से करता है - मोहल्ले में उल्टा सीधा सुनता रहता है न, इसलिए. बार्सीलोना में जो कबड्डी प्रतियोगिता हुई थी, बड़े चाव से टी. वी. पर देखी उसने.
बार्सीलोना आप गए नहीं होंगे कभी - वैसे अब कभी जाओ, तो यह मत कह देना कि भारतीय हूँ - लोग बाग़ उलटे सीधे मज़ाक करते हैं. अब आप पूछेंगे कि मज़ाक क्यूँ? कहते हैं हम इतने लोग खेलने कूदने गए और कोई पदक वगैरह नहीं लाये. उन्हें अब क्या समझाएं कि अरे भैया, जितना सोना देश में हैं, उसे ही हम गिरवी रख रहे हैं, अब और ला कर क्या करेंगे? और इज्जत का क्या है - वह तो आनी जानी है - बाहर घूम आते हैं, किताबों के कवर पर छप जाते हैं, यह क्या कम है? मुन्नू ने तो ऐसी बातें सुन सुन कर भारतीय टीम का एक गाना बना लिया था - न मांगू सोना चांदी, न मांगू हीरा मोती....
और भगवन, अब राजनीतिज्ञों की चौपाल - संसद - में यह बातें चल रही हैं कि हम क्यूँ हारे? नतीजा निकला - नीति ख़राब है. अरे, नीति किस चीज में अच्छी है तुम्हारी, जो तुम खेल नीति को दोष दे रहे हो! आपके जमाने के जो विदुर जी थे, उन तक की नीति तो कैसेटों में बंद है, जनता चीर-हरण देख लेती है, और नीति की बात आते ही कह देती है - लाइट चली गयी.
और बार्सीलोना में कुछ लोग अपने स्टेटस से अच्छा खेल गए तो इसका हमारे पास क्या इलाज है? एक देश है भगवन, टोटल हमारे मोहल्ले जितना, और इतने सारे पदक ले गया! अरे छोटा मुंह बड़ी बात - जितना सम्भाला जाए, ले जाओ, बाकी छोड़ दो, मौका पड़ा तो हम बटोर लायेंगे. नहीं तो, किसी को कुछ भेंट दे देंगे, काम हो जायेगा. हमारे यहाँ तो इस "भेंट" से कई काम निकल जाते हैं.
 
पहली किस्त - एक पत्र भगवान के नाम - 1

1 comment:

Abhilasha Mathur said...

Presence of the almighty
Be it 1991 or2010 you have shared your thoughts from the bottom of your heart, both as a young college guy and as a grown up citizen. Every day, every moment GOD understands your actions and the waves of thoughts and takes care of all the angles, sides and vertices of the geometry of your life.
Keep Writing.
That’s the only way to remember what you shared with GOD.

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