Sunday, March 07, 2010

लापता गंज

घटिया टी.वी. सीरिअल्स और रिअलिटी टी.वी. की लगातार बढ़ती भीड़ के बीच इधर बहुत समय बाद एक बहुत प्यारा सा धारावाहिक देखने को मिल रहा है - लापतागंज.
सब टी.वी. पर रोजाना रात्रि १० बजे दिखाये जाने वाला यह सीरियल हमारे समय के एक तीखे व्यंगकार कवि, पत्रकार, नाटककार और संवाद लेखक - शरद जोशी की छोटी छोटी व्यंगात्मक कहानियों पर आधारित है.

धारावाहिक के केंद्र में एक छोटा कस्बा है - लापतागंज जो कि बिहार और उत्तर-प्रदेश के बीच कहीं स्थित लगता है और यहाँ रहने वाले पात्र, जो कमो-बेश पूरे हिंदुस्तान में कहीं भी हो सकते हैं. 
आज जबकि करीब करीब सारा मीडिया और फिल्में शहरी बातें करते नजर आते हैं, यह धारावाहिक असली हिंदुस्तान यानी कि छोटे गाँव और कस्बों के सरोकारों के, वहां के पात्रों की बात उन्ही की भदेस किस्म की जबान में करता है, जो कि एक ताज़ा हवा की तरह है. 
और यकीन मानिए, मैं यह रोमानी हो कर नहीं कह रहा हूँ. आज इस बात की बहुत ज्यादा जरूरत है कि हम शहरों में रहने वाले लोग हिंदुस्तान के दिल - यहाँ के गाँव और कस्बों को समझने की कोशिश करें न कि उन्हें ही भोंडे किस्म के शहर बनाने पे तुल जायें. 
शरद जोशी की लेखनी, जिसने हमें बहुत सी फिल्मों के संवाद दिए हैं (दिल है के मानता नहीं, उत्सव आदि), बहुत नाटक (मशहूर नाटक एक था गधा उर्फ़ अल्लादाद खान इन्ही का है)  और उपन्यास (हम भ्रष्टन के, भ्रष्ट हमारे आदि ) दिए हैं, इस धारावाहिक की जान है - इसके संवादों और स्क्रिप्ट के रूप में. और इस के सभी कलाकार अपने सरल अभिनय से एक निर्दोष हास्य पैदा करते हैं, जो न केवल गुदगुदाता है बल्कि अपने व्यंग की तीखी मार से हमें कचोटता भी है. लेकिन सबसे बड़ी बात - हमें हर हाल में खुश रहने का और अपने आप पर हंस सकने का माद्दा भी देता है.
इसी धारावाहिक के एक लोकप्रिय पात्र "कछुआ चाचा" की तर्ज़ में कहूं तो - कभी कभी यह देखा भी जाता है, कभी कभी यह देखा नहीं भी जाता है, पर पसंद बहुत आता है. 

4 comments:

ashish gaur said...

truely agree with you.This one for sure is the best serial on TV these days.papa kasam yeh choti choti kahaniyon ke madhyam se hume gudgudata to hai hi sath mein vyangatmak tarike se seikh bhi deta hai.aaj ke maahool mein lupt hote iss tarah ki tark,vyango aur saf suthri hasi majak se bhari kahaniyon ko hame protsahan dena chahiyee.
aaj ke vyasko ko iski bahut jarurat hai.

Anonymous said...

I have not ben watching this serial, I think I must make it a point to watch this. One of my friends,Dr. Suman Gaur also suggested me to watch it. I can comment only after watching the serial.
S.V.Bhatt.

meeta said...

There was a saying - jiski lathi uski bhens. In my home - jiska remote uska TV.

Sure agree with you. Where is the meaningfuledutainment of yore. I sound soooo........ Old.

Rahul Gaur said...

Rightly said Ashee! हम वयस्कों को ऐसी सरलता की बहुत जरूरत है.

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